हम कभी नहीं मरते

रिपोर्ट :- सुनीता श्रीस्तावा

नई दिल्ली –एक मन होता कि फोन पर उसकी आवाज सुनु उससे बातें कर लूँ. फिर सोचता नहीं ठीक है कहीं मेरा ही बावलापन और न बढ़ जाये। एक बार तो छुट्टी की अर्जी लगाई थी जो नामंजूर हो गयी। इस बार बड़े साहब से खास तौर पर बातचीत की थी। मेरा मन इसी भंवर में घूम रहा था‌ कई प्रश्न और प्रिती के हंसने की किसी के कहने सुनने की आवाजे मेरी ज़हन में घूम रही थी। ऐसा लगता था जैसे मैं इस कमरे में हूँ ही नहीं: सेकन्ड लेफटिनेन्ट केशव चलो शाम से रात हो गयी खाना खाने चलो, मेरे रूम पार्टनर विनय की आवाज सुनकर मैं चौंका हमारी दिनचर्या हमारे व्यक्तित्व का सांचा है. उसे बिगड़ने नहीं देना है, ये जो मिलिट्री की नौकरी मे कड़े नियम में , मेगढ़ा हुआ मेरे जीवन की सामग्रियां हैं जो मुझे नियमपाबन्द सैनिक बनाती है।

कई बातें ऐसी होती थी, जिन्हें मैं गौर नहीं कर पाता था, सैनिक छावनी में रहकर बहुत सी बातों से कटकर हम जीवन जीते थे। भदले में परिवार की जरूरतें म मेडल,पदवी, अपनी जीवन की पावन्दी, तरक्की बस यही सब मेरे जीवन की दूरी है जिसके चारों तरफ‌ मैं घूम रहा हूं।

मेरे कमरे में मेरे साथ रहने वाले विनय राजपूत जो बहुत मिलनसार किस्म का व्यक्ति था, मेरी मन स्थिति को समझने की कोशिश करता, मिलिट्री में सभी सैनिक साथ ही खाना खाते थे। वापस आया तो “बातों ही बातों में विनय ने मुझसे कहा मिल जायेगी छुट्टि ।

यदि न मिल सकी तो सूबह पहले ही मां बाबूजी सबको इत्तेला करना होगा। शादी की तारीख आगे बढ़ानी पडेगी।

विनय ने कहा अरे नही , चिन्ता ना करो। “फिर मैं शीशे के आगे अपनी मूछों को बारीकी से छांट रहा था। शीशाके आगो, विनय ने रेडियो लगाया “विविध भारती’ पर सुन्दर नगमें प्रसारित न लागे, जो हम सभी सुबेरे तड़के ही उठ जाया करते थे , लेटे हुए हम गाने सुन रहे थे। एक गाना फिर दूसरा गाना, फिर तीसरा और अब विनय से नहीं रहा गया, कहने लगा किसी सोच में हो केशव ? अब क्या हुआ।

” मैंने विनय से कहा- हमारी दिनचर्या ऐसी है कहा हम ज्यादा कुछ सोच भी पाते हैं, और छुट्टियों की अर्जी लगाना भी प्रिविलेज माना जाता है।

ठीक है तो तुम इंतजार मत करो, अपने पापा को सवेरे ही फोन कर लो। इस बार विनय कोई निष्कर्श चाहता था।

हम समाज से कभी-कभी कटा हुआ महसूस करते थे, सुबह वर्जित करो, दौड़ लगाओ व्यायाम करना भी जरूरी था। आर्मी में जल्दी-जल्दी छुट्टी लेना अच्छा नहीं समझा जाता था। मैं फिर अपने बिस्तर पर लेटा हूं सोच विचार में लगा हूं मेरा दोस्त समझ रहा था कि मेरा मन कहां खोया है? दूसरे दिन फिर इसी तरह के गहरे सन्नाटे में उठना, नहाना, तैयार होना, पूजा करना इस बीच मेरे रूममेट विनय भी उठकर तड़के ही तैयार हो गया हमें कदमताल और शारीरिक अभ्यास हेतू जाना था,विनय में मुझे देखकर छेड़ा और कहा, “ये मन जीतने की बात नही केशव स्मार्ट बना प्रेक्टिकल बनो समझे, जरा चपल बनो।

” सच ही कहा विनय ने अपनी अहमियत भी बनानी पड़ती है तभी दुनिया मानती है, इस तरह मैंने सिर हिला कर हामी भरी जैसे कुछ रोचक घटनाक्रम खोजते हुए पाठक वाले बहुत सारे पानन पलटकर फिर नावेल को आगे से पढ़ना शुरू करते हैं जैसे उसके आगे क्या है कहानी में, फिर उसके आगे और कुछ मजेदार कुछ सनसनीखेज बस ये सोच कर मैं वास्तव हो गया कि मैंक्यूं सोचूं इतना वो सोचें जिनके बारे में मैं सोचता रहा हूँ के जिम्मेदारियों निभाता आ रहा हूँ। उस दिन इसे मैंने विनय से कहा, कुछ सामान खरीद लाता हूँ। कई वार कैन्टीन से सामान खरीदने चलो तो शाम को बहुत कुछ स्टाक खत्म हो चुकता है इसलिए, सोचता हूं थोड़ा कुछ खरीदता चलूं।

मुझे हर बार मेरी माता जी एक लिस्ट बनाकर भेजती थी किसी को अटैची तो किसी को फेयरनेस क्रीम किसी को अल्कोहल की बोतले तो किसी को थरमस मांगना होता था।

विनय ने मुझसे कहा • नहीं पहले छुट्टियां कितने दिन की मंजुर हुई हैं ये तो पता चलने दो।

‘ ‘तुम समझ नहीं रहे मां हर बार लिस्ट बना कर भेजती है, सो इस बार खरीदनाशी तो करनी है । बचपन से ही मैं पढ़ने-लिखने में व्यस्त रहता और मेरे बड़े भैया के बड़े सारे दोस्त हुआ करते थे, चुटकियों में मां को, दोस्तों की सलाह देने लगते थे, जैसे उनके हमेशा उत्तर तैयार रहते हों।
मां ने आंगन में नमकपारे का सामान फैला रखा था। बड़े भैया आये, दो नमकपारे मुंह में उछालते हुए मां से बोलो क्या कर रही हो?”

‘करूंगी क्या कुछ नाश्ता बनाकर रख लेती हूँ तेरी कोई बहन भी तो नहीं है कोई मेहमान आये जाये तो हमें ही देखना पड़ता है, ओह हो. मां बीज गई। अब बाते ही जाओगे। अभी सब खत्म करना है क्या? कुछ चिन्ता है, हम तुम्हारी खादी के लिए मना नहीं कर सके।

छोटी-मोटी नौकरियों से दाल नहीं गलेगी, समझे। अरे मां अब देखो, विना संकोच के मेरे भैया ने कहा. कहती थी कैसे नम्बर आयेंगे? सो पास हो गयानतो आगे भी सब जायेगा। भरी गर्मी में शादी रखवायी है, लड़की वाले ए.सी. देंगे क्या?’

पता नहीं। छोटा सा उत्तर और मां उठकर दूसरे कामों में लग पड़ी।

मेरे मैया उन्हें तो बड़ी से बड़ी बातहो जाय कोई छोटा सा उत्तर हमेशा तैयार रहता था।

कोई कहीं व्यस्त तो, कोई कहीं मस्ती में उस उम्र का प्यार कोई एक सहेली जो मुझे बहुत खीजती मगर बस अब वो पूरी होनी सौ हर पल प्रिती से ध्यान हटाने की भी सोचना तो सोचता ही रह जाता। मैं ठहरा सीधा-साधा बन्दा अपना बड़े भईया के विपरीत।

कर रूक-रूक कर हामी भरते “हमारे राजन भईया जब अपनी मंगेतर को आश्वासन दिया करने तो देखते ही बनता था। उधर अम्मा बाबूजी रस्म रिवाजों की बातचीत कर रहे होते थे तो भईया हमारे झट से अपनी अपनी व्यवहार कुशलता का परिचय देते हुए जवाब देते.हुए जवाब देते, जब उनकी मंगेतर ने मिलने जुलने की ख्वाहिश रखी तो कहने लगे, अरे भई बातें कर लो जितनी भी करनी हो मिलना-जुलना न हो पायेगा, वो (हंसकर) हमारे अम्मा बापूजी को ये सब पसंद नहीं ना….” बस एक अच्छी अंडरस्टैंडिंग बनानी है डियर….. तुम तो समझ ही रही हो। कुछ मामलों में बातें पहले ही साफ हो जायें तो अच्छा रहता है बस इसलिए बातचीत करता रहता हूं…अ तुम तो समझ ही रही हो और तो पिछले जमाने में लोग कम उम्र में शादी कर लेते। अब मन परिपक्व हो चुकता है सो आगे बहुत जरूरी है। बातचीत करना।
हां मैं समझ गयी।’

एक तरफ मैं जो यदि अचानक से प्रिती चौक कर फोन काट देती करती थी कि अरे कमरे में कोई आया.. तो मैं…. ठगा सा रह जाता था।

मन की माला के मोती बिखरे-बिखरे से थे, दूसरे दिन फिर वही सुबह चार बजे, नींद से उठकर नहाना है इस रात के सन्नाटे में उठना तैयार होकर परेड में शामिल होने का जाना था, विनय भी उठ गया था उसकी बातें मन बार-बार दोहराता था। आर्मी ज्वाइन करने के बाद अपने मन से बड़ा हो गया हूँ परन्तु प्रिती के कुछ एक बातें कानों में पड़ती तो जैसे

हृदय के चीनी का मीठा शीरा घोल दिया हो, दूसरी तरफ मन कहता अरे दुनिया देखो ज्यादा चपल न मीठा बनो क्योंकि इस दुनियाँ को जीतने के लिए अपनी अहमियत बनानी पड़ती है।

कहानी के पन्ने पलट कर मैं कहानी को आगे से पढ़ने लगता, जहां कथानक धीमा होता वहीं कुछ पन्ने पलट कर आगे बढ़े और व्यस्त हो गये क्यूं सोचूं मैं सबके बारे में। इस तरह भौतिकवादी होना पड़ता है और जैसे कोई कुर्ते की सिलाई उधड़ जाय तो उसे पहनना थोड़े ही छोड़ेंगे.. से। ऐसे मन को समझाने चला तुरप लेंगे फिर से ऐसे मन को समझाने चला

दोपहर को मैंने विनय से कहा कैन्टीन से बहुत कुछ लेना है, सोचना हूँ खरीद कर विनय ने कहा भई पहले छुट्टियां तो मंजूर होने दो।

होगी मंजूर छुट्टियां, तुम समझे नहीं विनय अभी पिछले ही साल हमारे चाचा जी शहर में जमीन लेने के लिए इच्छा जताई थी, कहने लगे केशव के मिलिट्री में नौकरी मिलने की बहुत सी सुविधाएं हैं हमें सस्ते में सिमेन्ट की बोरियां दिलवा दो, बाबूजी ने बिना किसी शर्त के उनका सहयोग किया, कहने लगे, अच्छा फैसला लिया है रिटायरमेन्ट के पहले शहर में घर बनवा रहे हो, हम केशव से कहेंगे, वह कभी बात को मना नहीं करता, हमारे राजन को भी छोटी सी नौकरी थी, केशव की सहायता से घर में ही अब किरयाने की दुकान डाल ली है।

प्रिती भी सब कुछ देख समझ रही थी, मैंने उससे कहा था, अभी पगफेरी के लिए मत जाओ, मुझे कम छुट्टियां मिली हैं।

ठीक है नहीं जाती, कहकर एक मीठी सी मुस्कान छोड़ देती थी। एक सिमटी सी वीर बहुरिया घर में छम-छम करती रहती, मामी कहती, प्रिती आज शाम के नाश्ते में कुछ स्पेशल बनाओ, हमारे मायके से कुछ लोग आयेंगे।

अच्छा भाभी कहकर फिर मुझसे कुछ खाने-पीने का सामान मंगवाया और रसोईघर में व्यस्त हो गयी, बच्चे भी प्रिती से हिले-मिले रहते। मार्च का महिना था, होली नज़दीक आ रही थी. रात को कमरे की खिड़की खोला, तो मीठी-मीठी बयार वह रही थी, जिससे रिम झिम फुहारों का गिलापन था, अक्सर होली से पहले हल्की फुहार वह जाती अभी लेटा ही था कि हौले-हौले बहती ठंडी हवा में मेरी पलकें भारी हो चली, कब नींद आ गयी, पता न चला… ….. लेकिन ये क्या देखता हूं कि सोते-सोते तो शरीर हिलाने की जगह नहीं, अलबत्ता कुछ लोगों की आवाज़े आ रहीं, फिर उनके जूतों की, मैं कुछ देख नहीं पा रहा ये कैसी बैचेनी है, ह. हां, आह . मेरी सांसे तेज हो चली और हांफते हुए उठकर बैठ गया, ये कैसा सपना था, कभी-कभी कहाँ से कहाँ पहुंच जाता हूं मैं…तभी प्रिती कमरे में आई मैंने पानी पीने का इशारा किया, उसके हाथ में धुले हुए कपड़ों का ढेर था, उसे एक तरफ पटक कर प्रिती भागकर पानी लेने रसोईघर की तरफ दौड़ी।

पानी पीकर मन कुछ शांत हुआ, प्रिती मेरे चेहरे की तरफ देखे जा रही थी, कुछ मन हाव-भाव तो प्रिती ने पूछा, कैसे उठ बैठे, अचानकक्या हुआ?

अरे कुछ नहीं, .. नींद लग गयी.. कुछ अजीब सा सपना था। ऐसा जैसे दो पाटों के बीच में आ गया हूं कुछ नहीं बचेगा, मेरे टूटे हुए वाक्यों से प्रिती समझ गयी। कुछ नहीं सोइये आराम से, बस थोड़े कपड़े प्रेस करते हैं।

मैं ऐसी वैसी बातों को मन में घर करने नहीं देता, एक लकड़ी की खाट जैसे बरामदे में एक तरफ छोड़ दी गई हो, क्यों ही छोड़ जाया वह भी..

फिर चलें छत पर बाट बिछाकर लेटे-तारे गिने वह भी मन को बहुत माता था मुझे। एक अजीब सी ख्वाब गाह में खो जाता था मैं इन गर्मीयों की रातें, खूब काटी थी। प्रिती की छोटी सी दुनिया थी ‌हमारे साथ कमरे में बैठी तरह -तरह की बातें सांझा करते वही छोटा सा कैमरा कश्मीर, कुल्लू-मनाली तो कभी स्वीटजरलैण्ड बन जाता। हमारे उसी कमरे में उसका सारा गौरव पूरा होता बस वो जैसे ही घर के कामों में हाथ बंटाकर मेरे पास आती, हम सपनों की दुनिया साझा कर रहे होते।

फोटो धुलकर आ गई है जी, दूसरे दिन हमारे पास फिर अपनी शादी की ढेर सारे रिश्तेदारों की चुहलबाजीयां, शाम को मैं कहीं से घूम-धाम कर आता तो प्रिती हम सबके लिए नाश्ता और तरह-तरह की सब्जियां पकाती थी, और सुबह उठकर नहा-धोकर मेरी मां के साथ पूजाघर और साफ-सफाई में जुट जाती। वित दिनचर्या के हिसाब से देखा जाय तो घर में बड़ी सुखशांन्ति थी कि तभी एक दिन अचानक मेजर साहब का फोन आया, पिताजी ने फोन उठाया। मेजर साहब हमारे ही शहर से थे, बात उन दिनों की है जब मेजर साहब के परिवार से हमारे परिवार की बहुत घनिष्टता थी. उन्होंने ही सुझाया मेरे पिताजी को अपने छोटे बेटे केशव को सेना में भर्ती करवा दो, देखने में भी लम्बा-चौड़ा है। साथ के साथ उसके नम्बर भी अच्छे आ गये। हैमेरेपिताजी ने कुछ विचार विमर्श करने के बाद कम्पीटीशन की तैयारी करवाने लगे, जल्दी ही सेना में मेरा चयन हो गया।

अपने अपने घर में काम बंटा हुआ था, पर सबकी नज़र जैसे मुझपे ही थी, पिताजी ने मुझे कमरे में बुलाकर बताया कि मुझे तुरंत ड्यूटी ज्वाइन करनी होगी, सीमा पर युद्ध शुरू हो गया है, मुझे छावनी जाकर एक फार्म भरना था फिर सीधे पठानकोट के लिए खाना होना था, कि कुछ भी सोचने-विचार करने के लिए समय न था। अम्मा तुरंत कमरे आकर कहने लगी, अभी कुछ दस बारह दिन हुए है तुम्हारी शादी को, हमें किसी चीज़ की कोई चाह नहीं तुम्हारे आगे बेटा, तुम हो तो सब कुछ अच्छा लगता है ऐसा न समझना कि मैं बुज़दिली की बाते कर रही हूँ, तुम्हारी जिंदगी हो तो करो देश की जीवनभर सेवा, क्यों नहीं उनके चेहरे का स्वाभिमान मुझे उस वक्त कुछ भी कहने से रोक रहा था। उन्हें रोकते हुए पिताजी बोले “सैनिकों को बहुत सी सुविधाएं हैं, अस्पताल में इलाज और देखरेख भी ऐसा कि हम तुम क्या कर सकेंगे। ”

सुबह सुबह फोन जाने पहले भी इसी तरह सब अपने काम में लगे थे, लेकिन तुरंत ही जैसे सभी परिवार के सदस्य गुपचुप से हो गये, एक अजीब सी शांति पूरे घर में पसर गयी जैसे सबकी आपस में अनबन हो गयी हो। ऐसा बोझिल माहौल तबदील हो गया। खुशनुमा माहौल किसे नहीं माता मुस्कराए हुए फूलों की आये जैसे हुए फूलों का मेहरा पहन रखा हो, और कोई टोक दे बस हो चुकी तुम्हारी शादी उतारो इस मेहरे को… प्रिती भलिभांति इस सच्चाई से परिचित थी कि वो सैनिक की पत्नी है और ऐसी महिलाओं को अपना हृदय मजबूत करके जीना पड़ता है उसे खुशी खुशी मुझे विदा करना होगा।

देर शाम पिती ने ज्यादा कुछ न कहा कहने लगी सबको अपनी अपनी जरूरतों की चिन्ता रहती।लेकिन
यहाँ अकेली औरत को सबके सवालों के जवाब देने होते हैं, तुम्हारे दूर रहने के बदले मुझे जो भी मिले वह तो लालच है, कोई समझौता नहीं है, ये उम्र के हर पड़ाव पर कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है, और जो यदि पति न रहे तो सबकी नजरे बदल जाती हैं, आप जाओ में सब सुलझा लूंगी, बहुत कठिन है पर फिर भी क्या कहूँ.. ये कहकर प्रिती बस चुप हो गयी। समाज का चलन बहुत क्रूर है, वह संघर्ष तो करेगी, लेकिन लोग मुश्किलें खड़ी करते रहेंगे। मिर्जा गालिब की ये लाइने याद करते मैंने अपनी रूखसती
ली……..

जब भी याद आयेगी महक लिया करेंगे। हमने तुम्हारी यादों को इव बनाकर रखा है। इन्हीं यादों ने मुझे मजबूती देकर मेरे दोनो कनधो पर हाथ रखकर कहा हो जैसे मैं तुम्हारा मुस्तकबिल हूँ मुझे अपनाते चलो। मैं तो पहले से ही निश्चित था, प्रिती ने ज्यों स्वीकृति दी मैं और भी निश्चित हो गया। हम तो युद्ध में लड़ने-मरने अमर होने को चले जाते हैं, पीछे से हमारा परिवारजुला जिन्हें हम भरभर प्यार लुटाते है वे पीछे छूट जाते हैं। उन्हें बदले में कुछ भी नहीं चाहिये होता. शादी करो घर संसार बनाकर चले जाना ऐसी शुरूआत किसे करनी होती है चूंकि हर रिश्ते का आधार है भरोसा वह कितना मजबूत है, निभाएँगे तभी भरोसा बनेगा हमें तो पहले ही हमेशा दूर रहने का वादा लेना होता है।

देश की सेवा के लिए हमें अपने जीवन की भी परवाह नहीं होती, अलग अलग देशों की परिस्थितियों में कई बार सालों तक समझौते नहीं होते हैं। कई देश ऐसे हैं हमेशा. जिनकी सीमाओं पर हमेशा खतरे मंडराते रहते हैं और कई वर्षों तक युद्ध होते रहते हैं। सीजफायर का कोई दृश्यहीनहीं बन् प्रति उच्च पद्धवि पर आसीन गणमान्य नेतागणों की भूमिका भी ऐसी होती है कि दूसरे देशों से समझौते हो सकें लेकिन वे भी राजनीति की रोटियां सेक रहे है और युद्ध जारी रहते हैं।

ट्रेन में पहुँच कर बैठे ही थे कि ट्रेन चल पड़ी मैं खिड़की की तरफ भागते हुए दृश्यों को सब कुछ हुए देखकर ऐसे पकड़ता जैसे समय सब कुछ छीनता जा रहा हो और कुछ घंटों में दृश्य बदलने वाला था. मैंने प्रिती को फोन मिलाया ‘हेलो सब ठीक है न.

“जी हां, आप मेरे साथ हैं तो फिक्र कैसी? प्रिती ने मुझे आश्वस्त किया। मुझे पता है पिती को मजबूत और खुश देखकर मेरे माँ और बाबूजी को भी मजबूती मिलेगी।।

यादों के सहारे मैं तो निकल पड़ा था. मग मायूस नहीं हूं गर्व हो रहा था चूंकि परिवार में और भी लोग सेना में भर्ती नहीं थे बल्कि में ही पहले व्यक्ति थे इसलिए सारी बातों को समझाना थोड़ा मुश्किल था, परिवार की सारी जरूरते और कमी बेसी सब से सबको खुशियां देकर वापस नौकरी पर लौट रहा हूँ। सभी अपने व्यों को वहन करते होगे। इस धरती के प्रति हमारा कर्तव्य है कि बारी आई तो समद में दुश्मनों का मुकाबला करने हम जीवन जीवन देश सेवा में लगेगा और न जीवित फिर भी मेरे अपने यही कहीं नहीं गया उसके विचार हर पल हमारे साथ हैं। इस तरह एक सैनिक के परिवारवालों की भूमिका कुछ ऐसी बनती है, सभी तो हम मरते नहीं हम शहीद हो जाते हैं, अमर हो जाते हैं। हम कहीं नहीं जाते इसी धरती मां में मिला हमारा लहू‌ हमारे जीवनका बलिदान हमे अमर बना देता है।

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