श्राद्ध न करने से हानि
हमारे शास्त्रों ने श्राद्ध न करने से होने वाली जो हानी बताई है उसे आप जान करके चकित रह जाएंगे।
जब व्यक्ति इस पांच भौतिक शरीर को छोड़ करके जाता है उस महायात्रा में अपना स्थूल शरीर भी नहीं ले जा सकता है साथ में अन्न जल ले जाने की तो बात ही छोड़ दो।
उस समय उसके सगे संबंधी उस जीव के निमित्त श्राद्ध विधि से उसे जो कुछ देते हैं वही उसे मिलता है ।
इसीलिए शास्त्रों ने मरणोपरांत पिंडदान की व्यवस्था बताई है सर्वप्रथम शव यात्रा के अंतर्गत 6 पिंड दिए जाते हैं जिनसे भूमि के अधिष्ठात्री देवताओं की प्रसन्नता तथा भूत पिशाचों द्वारा होने वाली बाधाओं का निराकरण आदि प्रयोजन सिद्ध होते हैं ।
इसके बाद दशगात्र में दिए जाने वाले 10 पिंडों के द्वारा जीव को आतिवाहिक सूक्ष्म शरीर की प्राप्ति होती है।
यह मृत व्यक्ति की महायात्रा के प्रारंभ की बात है आगे जाकर उस मृत व्यक्ति को अन्न जल आदि की आवश्यकता पड़ती है जो उत्तमषोडषी में दिए जाने वाले पिंडदान से उसे प्राप्त होता है ।
यदि सगे संबंधी पुत्र पौत्र आदि ना दे तो भूख प्यास से उसे वहां बहुत दारुण दुख होता है ।
जैसे मृत व्यक्ति के निमित्त उसके सगे संबंधी कुछ भी नहीं करते तो उस मृत व्यक्ति को अनेकों दुख भोगने पड़ते हैं ठीक उसी प्रकार से श्राद्ध न करने वाले को भी पग पग पर कष्ट का सामना करना पड़ता है।
मृत प्राणी बाध्य होकर श्राद्ध न करने वाले अपने सगे संबंधियों को श्राप देते हैं यहां तक कि उसका रक्त चूसने लगते
हैं।।
श्राद्धं न कुरूते मोहात् तस्य रक्तं पिबन्ति ते।
साथ ही वह पितृ उनको शाप भी देते हैं।
पितरस्तस्य शापं दत्वा प्रयान्ति च।
फिर इस अभिशाप से परिवार को जीवन भर कष्ट ही कष्ट झेलना पड़ता है ।
उस परिवार में संतान नहीं होना, लंबी आयु नहीं होना, किसी तरह कल्याण नहीं होना ,और मरने के बाद में नर्क में जाना ही पड़ता है इसलिए हर मानव को श्राद्ध करना ही चाहिए।।
मेरा अपना ऐसा मानना है यदि किसी कारणवश व्यक्ति यह सब कार्य अपने पितरों के लिए नहीं कर पाया है और वह परेशान है तो उसको अपने पितरों के निमित्त श्रीमद् भागवत सप्ताह मूल पाठ अपने घर में अवश्य कराना चाहिए कथा कर आए तो बहुत अच्छी बात है नहीं तो मूल पाठ कराना अत्यंत आवश्यक है उससे भी पितरों की मुक्ति निश्चित है।।