मै भारतवर्ष का हरदम समान करती हूं और यह की गणतंत्रता का गुणगान करती हूं
रिपोर्ट :- पलक त्रिवेदी
नई दिल्ली :-मै भारतवर्ष का हरदम समान करती हूं और यह की गणतंत्रता का गुणगान करती हूं मुझे चिंता नहीं है स्वर्ग जाकर मोछ पाने की, तिरंगा हो कफ़न मेरा मैं पलक त्रिवेदी बस यही अरमान रखतीं हूं।
मै पलक त्रिवेदी उन्नाव से 75 वे स्ववत्रता दिवस की हार्दिक बधाई देती हुं और आप लोगों के समक्ष अपने विचार रखना चाहती हुं।
प्रत्येक देश का इतिहास उत्थान – पतन से परिपूर्ण होता है। जो आज धुसरित है कल वहां पुष्प से सुवासित होगा। जिसने मरना सीखा है उसे जीने का भी अधिकार है।
जिस तरह रात्रि के बाद दिन दिन के बाद सूर्योदय होता है। अर्थात – सुन्दर होंगे देश बहुत से, बहुत बड़ी है यह धरती। पर अपनी मां तो अपनी ही है अमिट प्यार है वो करती।
यह तो आप सभी जानते है कि आज के समय में कोई किसी का गुलाम बनकर नहीं रहना चाहता । जहा तक की पिंजरे में बंद पक्षी भी स्वतंत्र होकर भमण करना चाहता है। लेकिन हमारा देश उन अंग्रेजों का गुलाम था।
लगातार उनके अत्याचारों को सहने के पश्चात् ऐसा प्रतीत होता था कि मानो हमारी भारत माता के हाथो में हथकड़ियां और पैरों में बेडिया पड़ी हो । अपनी भारत माता को इतना प्रताड़ित देखकर उनके महान सपूतों की छाती दर्द से फटने लगी । और वो शेरो की तरह दहडने लगे अंग्रेजों भारत छोड़ो के उद्घोष से पूरा देश गुजने लगा। नेहरू ने राबी नदी के तट पर पुण्य सवधिंता की मांग की थी – नेहरू ने अधिवेशन में अंग्रेजों को ललकार था, देश स्वतंत्र करने का संकल्प सबसे वहां करवाया था।
तब लोगो को प्रोत्साहित करते हुए शास्त्री जी ने कहा कभी ये मत सोचो की देश ने तुम्हारे लिए क्या किया बल्कि ये सोचो तुमने देश के लिए क्या किया । अपनी भारत माता को उन अंग्रेजों से मुक्त करते समय कई वीरो ने अपनी जान गंवाई, कई सपूतों को जेल जाना पड़ा, कई माओ ने बेटे खोए, कई औरतों ने अपना सुहाग खोए,कई बहेनो ने अपने भाईयो को खोया और कई बच्चे अंनथा हो गए । बहुत कठिन संघर्ष के बाद भारत को आजादी मिली । 15 अगस्त, 1947 को हमारे पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने पहली बार लाल किले में राष्ट्रीय ध्वज फहराया।
आजादी के 75 साल बाद भी हमारे देश का नागरिक आज़ाद नहीं है। देश आज़ाद हो गया , लेकिन देशवासी अभी भी बेड़ियां के बंधन से बधे है। ये बेड़ियां है अज्ञानता की, जातिवाद की, धर्म की, आरक्षण की, गरीबी की, सहनशीलता की मिथ्या अवधारणाओं की आदि। किसी भी देश की आज़ादी तब तक अधूरी होती है , जब तक वह का नागरिक आज़ाद ना हो।
आज क्यों इतने सालो बाद भी हम गरीबी में कैद है ? क्यों जातिवाद की बेड़ियां हमें आगे बढ़ने से रोक रही है? क्यों आरक्षण का जहर हमारी जड़ों को खोखला कर रहा है? क्यों धर्म जो आपस में प्रेम व भाईचारे का संदेश देता है वहीं आज हमारे देश में वैमनस्य बढ़ाने का कार्य कर रहा है, क्यों हम इतने सहनशील हो गये है कि कायरता की सीमा कब लांघ जाते हैं, इसका अहसास भी नहीं कर पाते? क्यों हम आज अपनी सोच के कारण पिछड़ते जा रहे हैं।