पहली बार पेरेंट्स बनने जा रहे हैं तो इसके बारे में जरूर जानना चाहिए
रिपोर्ट :- कशिश
नई दिल्ली :-मां बनकर एक नई जिन्दगी को दुनिया में लाना किसी वरदान से कम नहीं है। लेकिन, ये वरदान कई बार मां के लिए अभिशाप भी बन जाता है, अगर डिलीवरी के तुरंत बाद उसे घर-परिवार और डॉक्टर से सही गाइडेंस न मिले तो जन्म देने के बाद महिलाओं में पोस्टपार्टम ब्लूज एक आम बात है, इससे तकरीबन 75 प्रतिशत मां ग्रसित हो जाती है। लेकिन जब यही ब्लूज खतरनाक डिप्रेशन का रूप ले ले तो ऐसे में डॉक्टरी इलाज बहुत जरूरी हो जाता है।
भारत में इस पोस्टपार्टम डिप्रेशन पर बहुत ज्यादा चर्चा नहीं होती है। न ही ये प्रेग्नेंसी के दौरान ही काउंसिलिंग में शामिल रहा है। लेकिन समाज जैसे आधुनिकता की ओर बढ़ा है, अब बिल्कुल सही समय है कि लोगों को इस समस्या की तरफ जागरूक किया जाए।
प्रेग्नेंसी के दौरान एस्ट्रोजन, प्रोजेस्ट्रोन, टेस्टोस्टेरोन जैसे हैप्पी हार्मोन्स बनते हैं। फिर प्रसव के बाद महिलाओं के हार्मोन्स में बदलाव होते है। इन हार्मोंस का स्तर एकदम नीचे आ जाता है। इसके अलावा शारीरिक बदलाव भी एक तरह की मानसिक समस्या पैदा करते हैं, इसे पोस्टपार्टम ब्लूज कहते हैं।
पोस्टपार्टम डिप्रेशन की शिकार हर मां में अलग अलग लक्षण होते हैं। कुछ महिलाएं डिप्रेशन के दौरान बहुत वायलेंट, गुस्सैल और चिड़चिड़ी हो जाती हैं, सामान को तोड़ना, फेंकना और चिल्लाना जैसे काम करती हैं। इस प्रकार के लक्षण आने पर कई बार मां अपने बच्चों को भी नुकसान पहुंचा सकती हैं।
वहीं दूसरे प्रकार में महिलाएं बेहद शांत और उदास-अनमनी सी रहती हैं। उनमें खाना-पीना छोड़कर अकेले रहना और रोना आदि लक्षण दिखाई देते हैं। ऐसे में उनमें सुसाइडल टेंडेंसी भी आ जाती है, जिससे वो खुद को भी नुकसान पहुंचा सकती हैं।