कोरोना की वैक्सीन कितनी कारगर, समझें आसान भाषा में
रिपोर्ट :- प्रिंस बहादुर सिंह
कोरोनावायरस महामारी के खिलाफ पूरी दुनिया तेजी के साथ जंग लड़ रही है। हालांकि कोरोनावायरस महामारी का प्रकोप फिलहाल थमने का नाम नहीं ले रहा है लेकिन इन सबके बीच 2 दवा निर्माता कंपनियों के दावे ने दुनिया को राहत दी है। दवा निर्माता कंपन फ़ाइजर और मॉडर्ना ने दावा किया है कि उनके द्वारा विकसित की गई कोरोनावायरस की वैक्सीन 95% कारगर है। आइए आज हम आपको आसान भाषा में समझाते हैं कि इन दवा कंपनियों द्वारा किए गए दावे का मतलब क्या है।
फाइजर ने किया 95% कारगर वैक्सीन का दावा
नवंबर माह में दवा निर्माता कंपनी फाइजर और उसकी सहयोगी बायोएनटेक ने कोरोनावायरस वैक्सीन के परीक्षण के बाद यह दावा किया कि उनके द्वारा निर्मित कोरोनावायरस की वैक्सीन 95% कारगर है। कंपनी द्वारा प्राप्त जानकारी के मुताबिक फाइजर-बायोएनटेक ने टीका बनाने के लिए एमआरएनए तकनीक का उपयोग किया है, जिसका अर्थ है कि वैक्सीन का शॉट लेने से कोविड-19 होने का कोई जोखिम नहीं है। कोरोना वैक्सीन को लेकर फाइजर ने कहा कि 65 साल से ऊपर के लोगों में कोरोना वैक्सीन 94% कारगर है। यह कोरोना वैक्सीन फाइजर और बायोएनटेक द्वारा तैयार की गई है जो 65 साल से अधिक उम्र के लोगों को कोरोनावायरस का शिकार होने से भी बचाती है।
Moderna ने भी कहा उसकी वैक्सीन 95% कारगर
अमेरिका की बायो टेक्नोलॉजी फार्म मॉडर्ना द्वारा भी दावा किया गया है कि उसकी कोरोना वैक्सीन करीब 95% कारगर है। कंपनी द्वारा किए गए दावे के मुताबिक कोरोना की प्रायोगिक वैक्सीन 95 फीसदी असरदार साबित हुई है। Moderna Inc द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक शुरुआत में करीब 30,000 लोगों पर इस वैक्सीन का क्लिनिकल ट्रायल किया गया है।
अमेरिकी बायो टेक्नोलॉजी फर्म mRNA नामक एक वैक्सीन विकसित कर रही है और और उसका कहना है कि यह वैक्सीन क्लीनिकल ट्रायल में 95% कारगर साबित हुई है। Moderna के द्वारा जारी बयान के मुताबिक वैक्सीन के तीसरे चरण के क्लीनिकल ट्रायल के नतीजे बेहद सकारात्मक रहे हैं और यह वैक्सीन कोविड-19 समेत कई गंभीर बीमारियों को रोकने में कारगर साबित हो सकती है। कंपनी के मुताबिक इस वैक्सीन की दो खुराक चार हफ्तों के बीच 50 फीसद लोगों को दी गई थी बाकी 50 फ़ीसदी लोगों को नाम मात्र का टीका दिया गया था।
कैसे पता की गई वैक्सीन की इफिकेसी
किसी भी वैक्सीन का ट्रायल करते समय रिसर्च और आधे लोगों को वैक्सीन लगाते हैं और वही उस प्रक्रिया में शामिल आधे लोगों को प्लेसेबो यानी सलाइन देते हैं। इसके बाद कुछ महीनों तक इन वॉलिंटियर्स की निगरानी की जाती है और तमाम प्रकार की जांच भी होती है। रिसर्च और ब्लड टेस्ट द्वारा यह भी पता लगाते हैं कि शरीर में एंटीबॉडी डिवेलप हुए हैं या नहीं और इन सब के बाद किस ग्रुप के कितने लोग वायरस के लिए पॉजिटिव होते हैं या फिर उन पर क्या असर पड़ता है इसकी जांच की जाती है। वैक्सीन के रिसर्च अर्ज की माने तो जो लोग वैक्सीनेट होने के बाद बीमार हुए और जो बिना वैक्सीन के बीमार हुए उनके बीच का अंतर एफीकेसी कहलाती है।अगर दोनों ग्रुप्स में किसी भी प्रकार का अंतर नहीं मिलता तो एफीकेसी जीरो हो जाती है और वही अगर वैक्सीन दिए गए व्यक्ति के ग्रुप में कोई भी बीमार नहीं होता तो एफीकेसी 100% मानी जाती है।